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विदाई
शुभ विवाह संपन्न हुआ
अब समय विदाई का आया
खुशियों के अंबर में अकस्मात
गम का एक बादल छाया
जो चुप सा बैठा है,खुद को
लड़की का पिता बताता हैं
महक रहे सब आस पास
ना जाने क्यूँ वो मुरझाया

पल भर चुप ना होने वाली लड़की
अब गुमसुम सी क्यूँ हो रही है
जीवन भर के सायम्म को
ना जाने क्यूँ अब खो रही है
कल तक कहती थी ब्याह रचा दो
मैं खुशियाँ पा जाऊँगी
अभी तो खुश थी कुछ पल पहले
अब फूट फूट कर रो रही है
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