प्रेम की नई धारा....✍️
बस इतनी सी दर्खा़स्त है,
अगर न समझ पाऊं गर कभी,
तेरी उम्मीद भरी निगाह को,
तो अपनी उम्मीद को न गुम होने देना,
थाम के मेरी बांह को,
बयां करना अपने हर जज़्बात को ।
कभी जो उलझ जाऊं मैं,
दुनिया के रिवाजों में,
बंदिशें जकड़ी हो बेड़ियां हो पांव में,
हौले से बस थामना मेरी हथेली की थाप को,
खींच लाना तुम्हीं,
उस अंधेरे से रोशनी की छांव में ।
जो गर कभी जिम्मेदारियों का,
बोझा बढ़ जाए,
सुकून कन्ही जो खो जाए,
कर्तव्यों के साए में,
तुम बस...