...

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आज मेरी गलियों में....।
सपनों में जो ना सोचा था,
हकीकत में बरसात हुई।
एक सुंदर सी परी आई मेरी गलियों में,
उन से प्यार से बात हुई।


आंखे नशीली थी उनके,
मुखड़ा चांद के टुकड़ा के जैसा।
चमक चांदनी लेकर आई वो,
मणि यों के प्रकाश के जैसा।।


खूबसूरत ना होगा कोई इस जमाने में।
जाकर तुम पूछ लो, किसी गुलशन के फूलों से।
फीके पड़ जाएंगे गुलाब की पंखुड़ियां, उनके आगे।
वो सौंदर्य दृश्य लेकर उड़ आई, जैसे सावन के झूलो से।।


मासूम सा चेहरा है उनका, कली के जैसा।
फूल भी शरमाते हैं उनके सामने आकर।
कितनी भोली है, वो गुमसुम रहती हैं।
उन्हें कभी जो बोलना चाहूं, बोल देती हैं मुस्काकर।


कितनी अच्छी लगती है मुझे, मै देखता हूं उनका चेहरा।
पलकें नहीं झुकाता हूं उन्हें देखने पर।
हमें क्यूं ऐसा लगता जैसे खुद परी उतर आई हो।
मनोज भी सोचता है, वो मेरी दोस्त होती तो क्या होता मुझ पर।।

© writer manoj kumar❤️🖊️