...

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सांझ तुम क्यूं आतीं जीवन में।
सांझ तुम क्यूं आतीं जीवन में।
अंधियारा बढ़ता जाता है,
हर पल फिर आंगन में।

हुई रोश़नी मद्धिम,
अब सूरज भी डूब चला है।
थके-थके से पग पड़ते हैं,
पंथी ऊब चला है।

तारे कैसे मिटा सकेंगे,
जो अंधियार गगन में।
सांझ तुम क्यूं आतीं जीवन में।

बोझिल सा अब मन का दर्पण।
धुंधला चित्र दिखाए।
टिमटिम करता दीया कोई,
प्रेम की ज्योति जलाए।

शायद कुछ घृत, तेल शेष है,
लौ कह रही पवन में।
सांझ तुम क्यूं आतीं जीवन में।

सुबह सुहानी जीवन लाया,
हुई दुपहरी रंग चढ़ आया।
सांझ संदेशा लेकर आती,
रात्रि वक्त़ शयन का आया।

नियति यही है, प्रकृति यही है,
इस असार जीवन में।
सांझ तुम क्यूं आतीं जीवन में।

अंधियारा बढ़ता जाता है,
हर पल फिर आंगन में।
सांझ तुम क्यूं आतीं जीवन में।


© 💕ss