...

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अंत:मन
हृदय में बेशुमार मुहब्बत
जुबां पे आने से थिरकता

कतरा-कतरा ही सही
नैनों से है आंसु बरसता

निश्छल मन
अपार यातनाओं से ग्रसीत
दर्द दर्द से ही पर्दा है करता

वाणी में भेद वाणी का
हृदय व्यथित
आत्मसम्मान पे है चोट करता

अपार प्रश्नों से पीड़ित मन
अंदर ही अंदर है कुढ़ता