जिन्दगी की कशमकश
© Nand Gopal Agnihotri
# हिंदी साहित्य दर्पण
# तृष्णा
स्वरचित
हाय! ये कैसी कशमकश है जिन्दगी की,
पाँव लटके हैं मगर हो तृष्णगी भी ।
खेल में बचपन जवानी व्यस्तता में,
हो भरा कितना भी लेकिन रिक्तता में ।
चाह पाने की कभी मिटती नहीं है, ...