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फरेबी इश्क!
चलो मान लिया ये इश्क नही,
मन का एक फरेब है।
पर ऐसा फरेब मेरे मन ने पहले कभी किया नही,
बस एक ही नाम हर वक्त मेरी जुबां ने लिया नही।
उसके चेहरे को चाह कर भी मैं भुला नही पाता,
उसे महसूस करता हूं हर जगह, पर हाथ लगा नही पाता।
कैसे झूठ कहूं के गम_ए_ हिज्र_ए_यार नही,
और कैसे मान लूं कि ये फरेब है, प्यार नही।
© The heart bones
मन का एक फरेब है।
पर ऐसा फरेब मेरे मन ने पहले कभी किया नही,
बस एक ही नाम हर वक्त मेरी जुबां ने लिया नही।
उसके चेहरे को चाह कर भी मैं भुला नही पाता,
उसे महसूस करता हूं हर जगह, पर हाथ लगा नही पाता।
कैसे झूठ कहूं के गम_ए_ हिज्र_ए_यार नही,
और कैसे मान लूं कि ये फरेब है, प्यार नही।
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