...

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मैं आज मैं होना चाहता हूं
बिन सफर बिन मंजिलों का
एक रास्ता होना चाहता हूं
कहीं दूर किसी जंगल में,
ठहरा दरिया होना चाहता हूं

एक जिंदगी होना चाहता हूं
बिना रिश्तो और रिवाजों की
दूर आसमां से गिरते झरने में
कहीं खोना चाहता हूं
मैं आज " मैं "होना चाहता हूं

ब्लेक & व्हाइट सपनों को
रंगीन करने वाला
एक रोगन बनना चाहता हूं
कहीं दूर वृक्षों के छांव में बैठकर सपनों में डूबना चाहता हूं
खुले आसमान में बैठकर
तारों को गिनना चाहता हूं
मैं आज "मैं" होना चाहता हूं

अंबर के पखेरू के साथ
उड़ कर उनसे गपशप
करना चाहता हूं
परिंदो के साथ वृक्षों पर
उनका नीड़ बनना चाहता हूं
समन्दर में मीनो के साथ
जल मग्न होना चाहता हूं
मैं आज "मैं"होना चाहता हूं



✒📝 ......गिरेन्द्र प्रताप सिंह


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