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फ़िक्र
तुम जो गिरे तो मैं तुम्हें सम्हाल लूंगी
हर मुसीबत से तुम्हें निकाल लूंगी
मगर ऐसा नहीं है कि सिर्फ तुम ही गिरते हो
अगर मैं गिरी तो क्या तुम मुझे सम्हाल पाओगे
क्या मुश्किलों से मुझे यूं ही निकाल पाओगे
कब तक आखिर यूं ही लड़खड़ाओगे
अपने पैरों पे कब खड़े हो पाओगे
वक़्त है अभी भी संभल जाओ
जब हम ना होंगे तो किसके पास जाओगे
कौन तुम्हें इस तरह सम्भालेगा
उम्र भर कौन तुम्हें पालेगा
बेहतर है खुद से ही संभल जाओ
अभी भी वक़्त है बदल जाओ।
हर मुसीबत से तुम्हें निकाल लूंगी
मगर ऐसा नहीं है कि सिर्फ तुम ही गिरते हो
अगर मैं गिरी तो क्या तुम मुझे सम्हाल पाओगे
क्या मुश्किलों से मुझे यूं ही निकाल पाओगे
कब तक आखिर यूं ही लड़खड़ाओगे
अपने पैरों पे कब खड़े हो पाओगे
वक़्त है अभी भी संभल जाओ
जब हम ना होंगे तो किसके पास जाओगे
कौन तुम्हें इस तरह सम्भालेगा
उम्र भर कौन तुम्हें पालेगा
बेहतर है खुद से ही संभल जाओ
अभी भी वक़्त है बदल जाओ।
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