...

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कोई अपना सा...
अपनों की तालाश में गुम सी जाती हूँ, भूल ही जाती हूँ अपने दिल की धड़कन,
चोट बहुत लगती है, क्योंकि पत्थर दिल तो हूँ नही मैं... दिल में प्यार ही बस्ता है,,,
बहुत रोकती हूँ खुद को की छोड़ दूँ उनकी
पर हूँ ही मैं पागल समझती ही नही खुद की,,,
बस काटें रखे है कि पंखुड़ियां संभल जाए,,,
गुलाब सा ये दिल कहीं मुरझा के ना सूख जाए,,,
काश वो कोई हो जो मुझे अपना सा मिल जाए...
अपना सा मिल जाए!!!