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शराबी और उसका परिवार

शराबी और उसका परिवार

दिन दीवाली का था हम सुबह से खुश थे
माँ सीता की तरह बच्चे लव और कुश थे
सारा सामान था जलने और जलाने का
कुछ पटाके अच्छे थे तो कुछ फुस थे
एक रात पहले ही सब पापा लाये थे
दीवाली नहीं बनी हमारी पापा पी कर(शराब) आये थे।


एक सुबह ऐसी थी कुछ अच्छा होना था
परिणाम आना था कुछ तो होना था
मेरी खुशियों का ठिकाना नही था हम सब अच्छे नंबर लाये थे
खुशियां नहीं मन पाई क्योंकि पापा पी कर (शराब) आये थे।

उस दिन तो चाचू का प्रोमोशन हुआ था
दादाजी का नाम फिरसे रोशन हुआ था
हमने पार्टी की सोची थी पर कर न पाए थे
याद है मुझे पापा पी कर आये थे।

उन्होंने माँ को सताया था सब देखते थे हम
वो बिना कुछ कहे सह लेती थी गम
एक दिन वो खुश थी क्योंकि मामा के लिए रिश्ता लाये थे
रात को रोई हैं वो क्योंकि पापा पी कर आये थे

एक बार फिर से इस घर को खुशियों से जोड़ दो न पापा

बहुत होगया अब ये शराब छोड़ दो न पापा


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