...

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“तू मरके भी जिंदा क्यूं है ??"
ये चांदनीयों का असर, जहन में समाया क्यूं है ?
ये असलियतों में ख्वाब, पराया क्यूं है ??

कुछ खामोशी के खोफ, मुसलसल जीने नहीं देते,
तमाम कानों में शोर, हमारा क्यूं है ??

हाथों में कसे, हाथों का सबक, जानलेवा है मेरी जां,
ये मोहब्बत का खेल, इतना निराला क्यूं है ??

कि खबर है, “जान", कब्र में है जानी,
हर सदी ने, फिर ये अरसा, दोहराया क्यूं है ??

गिनकर बताऊं, तो फकत आंखों तक ही जिया हूं मैं,
दिल के रास्तों में, “गम", बेसहारा क्यूं है ??

मैं खड़ा ही नहीं, “वहां", वहां तू आया है क्यूं ?
गलत लोगों से मिलाना था, तो मुझे सुधारा क्यूं है ??

है अजब तमाशा, मगर, समझ गया हूं मैं,
ये कुछ समझा नहीं मैं, क्या समझ गया हूं मैं ??

था आदतों पे यकीं, फिर आदतों पे गुजारा क्यूं है ?
मैं जीकर भी मर रहा हूं, तू मरके भी जिंदा क्यूं है ??.....
© #Kapilsaini