...

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दृष्टि
बहुत बार मैंने
आंखों देखी ही सच मानी
उनमें झांककर देखा नहीं
छदम भी होता है कभी

कई बार आंखों से
गलत सोच बनाई मन में
सोचते हैं वो गलत था
मानवीय कमी थी हमारी

अब आंखें को देख
उनके मन को पढ़ते हैं
जो दिखा सच नहीं माना
अब भीतरी सच देखते हैं

लेकिन अपने कर्मो
का हिसाब अब देना पड़ेगा
आंखों में मोतियाबिंद हुआ है
आपरेशन करवाना ही पड़ेगा

सोच सही दृष्टि सही
दृष्टिकोण भी सही हो
की हुई भूलों का प्रायश्चित
उदार और करुणामय दृष्टि हो



© mast.fakir chal akela