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मायने दोस्ती के
आज फिर दोस्ती के मायने बदल गए कुछ कहा नहीं उसने पर शब्द जो. मन की जीवा पर घुल गए , शरीर स्थिर सा हुआ तभी मस्तिष्क में कोई विचार ना रहा क्योंकि सब कुछ हम तो स्थिर जीवा से ही बयान कर गए , आज फिर दोस्ती के मायने बदल गए उसने जो इल्जामओ के तीर यू जो हम पर छोड़ें की गुनहगार नाथे खुद को यही समझाते रह गए, जब कोई कारण ना बचा बेवफाई का तो स्वयं पर ही व्यंग सुनाते रह गए क्योंकि आज फिर दोस्ती के मायने बदल गए उसने अपने शब्द जाल मैं कुछ यूं हमें फांस लिया कि हम शब्द जाल के तारों से अपना घरौंदा बनाते रह गए , जब बारी आई प्रति उत्तर की तो बस आकाश में विचलित पंछी की तरह खुद को शिकारी बाज से बचाते रहे गए की आंखें चुराते रहे गए क्योंकि आज फिर दोस्ती के मायने बदल गए
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