...

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अदृश्य धागे
(Hindi version of an old self written poem)

इस धरा के नीचे, या फिर आसमां के उस पार,
जहाँ हमारी नज़र नहीं पहुँचती..
वहाँ तक ये अदृश्य धागे, समय और दूरी को
पार करते हुए खिंचते रहते हैं।
एक प्यार की हल्की सी आवाज, जो कभी खत्म नहीं होती,
जो हमारे जीवन के रोम-रोम में बसी रहती है..
वहीं से हमारी कहानी अभी शुरू हुई है।

यादों की नरम छांव में,
या किसी भूली-बिसरी जगह की चाहत में..
ये धागे हमें धीरे-धीरे अपनी ओर खींचते हैं,
सपनों को बुनते हैं, और दिलों को उन जगहों से जोड़ते हैं..
जिन्हें सिर्फ हमारी आत्मा ही समझ...