...

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चाहत...... (तुम्हे पाने की)
तुम्हे पाने की चाहत में,
बटकते रहे सदियों से,
पर जब तुम्हें पाने का सोचा,
कम्बख्त वक़्त हो गया बेवफ़ा,
यूँ तो हम वाक़िफ़ नहीं,
इन सारी बातों से,
पर तुमसे मिलना शायद इत्तेफाक था,
कोशिश तो बहुत की तुम्हें हासिल करने की,
पर किस्मत में हमारा मिलना,
शायद यहीं तक था,
मेरा इरादा बेवफ़ाई करने का न था,
पर क्या करू शायद वक़्त खफ़ा था,
कसम मेरी चाहत की,
ऐसा दर्द महसूस हो रहा था,
जैसे मैने किसी अपने को खोया था,
यही दुआ करेगे रब से,
की तुम्हें मेरी चाहत पसंद आये ज़्यादा सबसे.....

© Kashish Chandnani