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ग़ज़ल
इक नई चाल की ज़रूरत थी
जंग में ढाल की ज़रूरत थी

सर्द रातों में आप की यादें
ठंड में शॉल की ज़रूरत थी

हम मुहब्बत समझ रहे थे जिसे
एक-दो साल की ज़रूरत थी
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