...

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किसी का इंतज़ार है।
न कयामत की उम्मीद है, न कोई चाहत-ए-दीदार।
सूरज भी ढल रहा है, शमा को है किसी का इन्तजार।
अवसान-ए-दिवस पर तीरगी तबस्सुम लिए बैठी है,
बुढ़ापा के आमंत्रण पर जवानी रो रही है जार-जार।

© पी के 'पागल'