यार शहर में था तो बहार थी,,
यार,,..........
शहर में था तो बहार थी,,
उसके जाते ही सब उजड़ गया,,
बस कुछ हज़ार किलोमीटर की हैं दूरियाँ,,
ऐसा लगता है जैसे बिछड़ गया,,
है किस वो हाल में कोई ख़बर नहीं मिली,,
इस रेत के समंदर जो कोई अब्र नहीं मिली,,
क्या सोच रहे हो,,..........
मशरूफ़ थे तुम तो तुम्हें ख़बर मिले क्यों,,
नज़र अंदाज़ करते हो तो फिर तुमको इतने गिले क्यों,,
माना तुम अपनी ज़िम्मेदारी बड़े अच्छे से...