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स्त्री के किरदार
घर में बेटी का जन्म होता है तो खुशीयां जनम लेती है
किसी के मन में हर्षो-उल्हास का सागर तो किसी के मन में खटास पनाह लेती है
मां बाप के लिए तो बेटी लक्ष्मी का रुप होती है
क्या बेटा क्या बेटी, दोनों एक ही स्वरुप होते है
अमावस से पोर्णिमा बढ़ते हुए चंद्रमा की तरह बेटी हर‌ दिन बड़ी होती है
अपने घर परिवार को एक नए परिवार से जोड़ने की यही एकमात्र कडी होती है
बेटी से...