...

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बेवकूफ़ लड़का.....!
सूर्यास्त के बाद
जब सूर्य जा चुका होता है
तब उसका मोह बनकर
लालिमा ठहर जाती है क्षितिज पर

कुछ इसी तरह
जा चुकी है वो एक बीती हुई ऋतु की तरह
मगर अभी खड़ा हूँ मैं वहीँ
उसका मोह लिए ज़िन्दगी के क्षितिज पर

लेकिन सूर्य तो जाते जाते
दे जाता है सांत्वना धरती को
कल फिर उजाला करने के लिए
फिर से कल लौट आने के लिए ।

लेकिन एक बेवकूफ लड़का
खड़ा है वहीँ
बिना किसी सांत्वना के
बिना किसी प्रश्न के
यादें
उम्मीदें
परवाह
पसन्द
आखिर सबको ताक पर रख कर
वो तो कबकी जा चुकी है
लौट कर आने की सुगबुगाहट भी जा चुकी है

लेकिन मैं ठहरा बेवकूफ़ लड़का
पर्वतों से रास्तों की उम्मीद करता

रेगिस्तान में झरनों की उम्मीद करता
पतझड़ में बहारों की उम्मीद करता
आखिर उम्मीद टूटनी ही थी,
टूट ही गई ।

पाने की चाहत में
सबकुछ खोना होता है
बेहतर की उम्मीद में
सबकुछ बदतर होना होता है ।

कभी कभी सबकुछ भुलाकर
आगे बढ़ना होता है ....!