...

23 views

भूख
बड़ी बेगैरत वाली शाम थी
जब भूखे सोए रात थी
इस उम्मीद मै जंग वोह लड़ी थी
सुबह वाली किरण से क्यों इतनी आस थी
चौराहे पे बैठा रहा बन मुसाफिर आने की आस थी
दोपहर हो गया पीने की जो प्यास थी
बैठा रहा आस मै इंसानियत की मिलिंजुलिं बात थी।
घूंट घुट पीता था दुःख और आशु की बात थी
परिवार ने बोला लगता है किसी का मजाक थी
भूखे बच्चे रोते रहे खुदा की जो रास थी
मै अकेला क्या करता परिवार का मुखिया को आस थी
हर सुबह यही हालत और बात थी
ले जान मेरी उस घर की यही बात थी
इसी बहाने दो वक़्त को खाने मिल जाए
मेरे बच्चो को ये अंतिम उनकी सांस थी


© rsoy