भूख
बड़ी बेगैरत वाली शाम थी
जब भूखे सोए रात थी
इस उम्मीद मै जंग वोह लड़ी थी
सुबह वाली किरण से क्यों इतनी आस थी
चौराहे पे बैठा रहा बन मुसाफिर आने की आस थी
दोपहर हो गया पीने की जो प्यास थी
बैठा रहा आस मै इंसानियत...
जब भूखे सोए रात थी
इस उम्मीद मै जंग वोह लड़ी थी
सुबह वाली किरण से क्यों इतनी आस थी
चौराहे पे बैठा रहा बन मुसाफिर आने की आस थी
दोपहर हो गया पीने की जो प्यास थी
बैठा रहा आस मै इंसानियत...