...

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हृदय की अवर्णनीय लालसा
#लालसा_की_प्रतिध्वनि
हृदय के किसी कोने में,
कुछ तो याद बाकी है ,
तड़फकर जो की थी हमने,
वो फरियाद बाकी है,

पाने को कुछ था हृदय में,
खोने को जो काफी था ,
बार- बार आंधी सी आए ,
कुछ तो बात बाकी है ,

शांत हृदय में शोर करे जो,
ऊंची लहरें काफी हैं,
इन लहरों में फंसी है कस्ती,
दूर किनारा काफी है,

कमी किसी की महसूस हो रही,
लालसा क्यों बढ़ती जा रही ,
पता है की ,था एक सपना ,
नींद से जगना बाकी है ,

हृदय क्यों दुश्मन सा लागे?
संकरी गलियों में ये भागे ,
मंजिल ना दिख रही दूर तक,
वापस आना बाकी है ,

यूं तो सब कुछ है जीने को ,
कमी नहीं दिखती कोई भी,
लगता है क्यों सब होकर भी,
अभी भी कुछ तो बाकी है ...

अभी भी कुछ तो बाकी है ...

© Munni Joshi