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मरहम
मरहम

ज़रूरी तो नही हर ज़ख्म पर मरहम लगाया जाए
क्यूँ न कुछ ज़ख्मों को कुरेद कर नासूर बनाया जाए
वो नासूर जो दिन रात पल पल हर साँस पर दुखता जाए
और याद दिलाए वो सबक जो उस ज़ख्म के साथ आए
रुह काँप जाए याद करके वो पल
जब मासूमियत को मिला था छ्ल
हर आती जाती साँस, दे गवाही उस दर्द की
रुकते बढ़ते कदम ,राह न खोजें मंजिल की
मन ना तड़पे, न बहके , न बहले
भूल के भी न भूले छलावे पहले
चलो कुछ जख्मों को रहने देते हैं खुला
सहने देते हैं उनको दर्द की धूप पानी हवा
न उन पर मरहम लगाया जाए
चलो कुछ जख्मों को नासूर बनाया जाए


© Garg sahiba