...

2 views

कल्पनातीत प्रेम
जब से तुम यूँ मिली हो मुझको, स्वर्णिम कुंज भ्रमर में।
प्राण वेग अवरुद्ध हुए, आतृप्त भावना उर में।।
प्रीति सदा अजेय रही, तुम क्यों उलझे यौवन में?
पौरुष ने क्या जीता ये, देखो प्रपंच जीवन में।।
स्वप्नों की स्वर्णिम कल्पना, तुझे देख साकार हुई।
तुझे देख मेरे जीवन की, प्रत्येक दिशा कृतार्थ हुई।।
प्रथम दृश्य अनमोल धरोहर, इससे मत तू चूक प्रिये।
आदि अंत के बीच छिपी है, जीवन की तस्वीर प्रिये।।
हम सब माटी के पुतले, नीरस समस्त प्रपंच सखी।
जन्मे सब निश्चित ही मरेंगे, प्रत्येक शब्द है सत्य सखी।।

© KunwarPratap