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कल्पनातीत प्रेम
जब से तुम यूँ मिली हो मुझको, स्वर्णिम कुंज भ्रमर में।
प्राण वेग अवरुद्ध हुए, आतृप्त भावना उर में।।
प्रीति सदा अजेय रही, तुम क्यों उलझे यौवन में?
पौरुष ने क्या जीता ये, देखो प्रपंच जीवन में।। ...