...

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guzar hi Jana he kabhi....
गुज़र ही जाना है इस दुनिया से कभी,
क्यूँ गुज़ारे फिर लम्हे हसरतों में यूँही,

उतर ही जाने हैं सारे नशे यहीं,
क्या इश्क़ क्या शराब क्या दिल्लगी,

शिकवे गिले सरे कह भी दे तो किसे,
हर किसी को हे अब तो अपनी ही पड़ी,

अपने आप को भी संभाला जाये सफर ऐ ज़िन्दगी में,
खुद को भी खोना पड़ता है हमसफ़र ही बिछडे जरुरी तो नहीं,

राख या ख़ाक ही बनेगा "जावेद" कभी,
क्या ढूंढ़नी हर किसी में कोई ना कोई कमी...
© y2j