...

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अचानक ही
अचानक ही


अचानक ही तेरे माथे की बिंदी
दिख गई श्रंगारदान के शीशे की कोने में
अनायास ही तेरा चेहरा घूम गया
मेरी आँखो से ले कर हृदय पटल पर
जाने कितनी ही बातें याद आगाई
अचानक ही
फिर से तुम्हारी कमी महसूस होने लगी
कुछ ज़ख़्म जो भरे ही नहीं
वो फिर से हरे हो गये

© 𝕤𝕙𝕒𝕤𝕙𝕨𝕒𝕥 𝔻𝕨𝕚𝕧𝕖𝕕𝕚