...

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ये मानकर...
करता भी क्या मैं किसी की बात का बुरा मानकर
जमाने की बद्दुआओं को मैंने लिया, दुआ मानकर...

अक्सर अपने ही निकलते हैं रक़ीब कोई और नहीं
जिन पर करते हैं भरोसा, हम अपना सगा मानकर...

अब कोई गुरेज नहीं मुझको, उसके दिए जख्मों से
उसके नमक भी रगड़ता हूं ज़ख्मों की दवा मानकर...

किसी से बयां नहीं करते किस्से उसकी बेवफाई के
हम तो देखते...