...

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मै था बंद पिंजरे मै
मै आजाद हू ओर तुम, हो प्यारे बन्द कमरे मै
मै विचरु नभ मै फ़्री होकर,नही अब तेरे पिंजरे मै
कि तूने भी तो रे मानुष, किए है जुल्म हम पर कई
रखा था बन्द मुझको तो, खुद ही अब रह अंधेरे मै


रहा दुसबार है जीना, तेरे संग पक्षी पशुओं को
पड़ा है बिष को भी पीना,नही देखा तू अशुओ को
नही था खौप तुझको तो, मेरी कृन्दित पुकारो का
बना था कंश के जेसे, था मारा जैसे वसुओ को
राजा आदर्श गर्ग