P1- मेरी नज़्म...!
काफी दिन हो गए अब,
कोई नज़्म इस ज़हन की गलियों से गुज़री नहीं...
कोई ख़याल थाम के हाथ उसका, टहलने भी नहीं आया इन रास्तों पे...
और ना ही जज़्बातों की मुलाकात ही हुई उससे ...
एक अरसा सा हो गया जैसे ...
नज़्म जब मिलती नहीं इस कदर, तो बेचैनी सी महसूस होती है ...
कुछ खाली-खाली लगता है सीने में, बेवजह गुज़रे वक़्त के जाले लग जाते है ...
उसकी आहट जब भी आती है,
तो धड़कन घुंघरुओं सी सुनाई पड़ती है ...
साँसों की रफ़्तार ताल से ताल मिलाती है और,
कलम कागज़ पे नाच पड़ती है ... !
सुकून की स्याही से तब मैं अपने दस्तखत करता हूँ आखिर में...
एक नज़्म के मिलने का जश्न तब चहरे पे ख़ुशी और होटों पे हसी छोड़ जाता है... !
पर ना जाने क्यों ...
काफी दिन हो गए,
मेरी नज़्म मिली नहीं मुझसे ...!
आपसे किसी राह में टकराए तो कहना...
मैं इंतज़ार कर रहा हु उसका... !
- राजकमल
२१.०८.१२ (पुणे)
कोई नज़्म इस ज़हन की गलियों से गुज़री नहीं...
कोई ख़याल थाम के हाथ उसका, टहलने भी नहीं आया इन रास्तों पे...
और ना ही जज़्बातों की मुलाकात ही हुई उससे ...
एक अरसा सा हो गया जैसे ...
नज़्म जब मिलती नहीं इस कदर, तो बेचैनी सी महसूस होती है ...
कुछ खाली-खाली लगता है सीने में, बेवजह गुज़रे वक़्त के जाले लग जाते है ...
उसकी आहट जब भी आती है,
तो धड़कन घुंघरुओं सी सुनाई पड़ती है ...
साँसों की रफ़्तार ताल से ताल मिलाती है और,
कलम कागज़ पे नाच पड़ती है ... !
सुकून की स्याही से तब मैं अपने दस्तखत करता हूँ आखिर में...
एक नज़्म के मिलने का जश्न तब चहरे पे ख़ुशी और होटों पे हसी छोड़ जाता है... !
पर ना जाने क्यों ...
काफी दिन हो गए,
मेरी नज़्म मिली नहीं मुझसे ...!
आपसे किसी राह में टकराए तो कहना...
मैं इंतज़ार कर रहा हु उसका... !
- राजकमल
२१.०८.१२ (पुणे)