P1- मेरी नज़्म...!
काफी दिन हो गए अब,
कोई नज़्म इस ज़हन की गलियों से गुज़री नहीं...
कोई ख़याल थाम के हाथ उसका, टहलने भी नहीं आया इन रास्तों पे...
और ना ही जज़्बातों की मुलाकात ही हुई उससे ...
एक अरसा सा हो गया जैसे ...
नज़्म जब मिलती नहीं इस कदर, तो बेचैनी सी महसूस होती है ...
कुछ खाली-खाली लगता है सीने में, बेवजह गुज़रे...
कोई नज़्म इस ज़हन की गलियों से गुज़री नहीं...
कोई ख़याल थाम के हाथ उसका, टहलने भी नहीं आया इन रास्तों पे...
और ना ही जज़्बातों की मुलाकात ही हुई उससे ...
एक अरसा सा हो गया जैसे ...
नज़्म जब मिलती नहीं इस कदर, तो बेचैनी सी महसूस होती है ...
कुछ खाली-खाली लगता है सीने में, बेवजह गुज़रे...