...

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अदब
वो लोग भी अदब के हमको अब मिले भी कहां
जो मिले भी हमको वे-अदब हमको मिले हैं यहां

खुद की अदबगी पर कितना भी एतवार कर लूं
फ़टे हैं जो मन के ये कपड़े हम अब सिले भी कहां

ये ज़माना भी हैं अब तो दस्तूर-ए-मिलन का यहां
जो बिछड़े थे लोग आज वो हम से मिले भी कहां

हुए जो हम रुख़सत वो आए हैं मिलने हम से यहां
वो रो के मिलते हैं हमसे अजीज-ए- कायदे से यहां

वो लोग भी अदब के हमको अब मिले भी यहां
धो रहे जो गिले-शिकवे अपने आंसुओ से यहां
© DEEPAK BUNELA