...

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कभी तो दो ये मौका
कभी तो दो ये मौका
सुबह ऑँख खुलते ही तेरा दीदार हो जाये
बाँहों में तेरी सिंदूर का रंग चटकीला हो जाये

गुफ्तगू हो हौले से रूमानियत भरी
मेरी जुल्फों की छांव में सहर हो जाये

सुने दिल की धड़कनों की जुंबा हम दोनों
जिस्मों को भी संगम का अहसास हो जाये

इंतजार में निहारते घड़ी की सुइयों को हम
मिल जाये बारह बजे की सुइयों जैसे
वक्त का ठहराव वहीं हो जाये

जानती हूँ हो चुका हैं अपनी रूहों का मिलन
जताना चाहती हूँ मैं हक तुझ पर ऐसे
अब तेरी है ऋत्विजा ,तुझे ये अहसास हो जाये
© ऋत्विजा