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माता पिता का प्रेम
माता पिता के प्रेम से ही
बनते हैं कुछ बिगडैल नवाब
माता पिता के प्रेम से ही
बनता है कोई सर्वप्रिय राम
माता पिता के प्रेम से ही
कुछ छायाँ के पुष्प से नाजुक बने
माता पिता के प्रेम से ही
कोई राम बन दुर्गम डगर चुने
माता पिता के प्रेम से ही
कोई दुर्योधन सा निरंकुश बने
माता पिता के प्रेम से ही
कोई श्रवणकुमार सा कावड़ बुने
प्रश्न यहाँ उठता है प्रेम पर
क्या प्रेम में अन्तर रहा भला
प्रेम को संग जब मिला सीख का
प्रेम मिला जब संस्कारों से
प्रेम के संग जब जुड़ गये आदर्श
प्रेम बना फिर नींव चरित्र की
प्रेम बना शक्ति जीवन की
वो प्रेम ही क्या जो योग्य न कर दे
जीवन की हर कठिन डगर के
वो प्रेम की क्या जो हृदय को निर्मल
और चरित्र को उज्वल न कर दे



© Garg sahiba