...

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वो लम्हे।


कुर्बानी दी हमने तुम्हारे लिए
तुम नाराज़ थे, में तुम्हें मनाऊ इसलिए..।।
कसुर था उस वक़्त का,जो दर्द दिया तुम्हें।।
हम वो लम्हे थे जहां कुर्बान कर गए मुझे..।।

नादान थी में जो कुर्बान कर गई मुझे..।।
सुकुन का राह दिखा गई मुझे।।
हमने थामा था हाथ तुम्हारे हाथ।
जीने का बहाना कर गई मुझे।

यूं ही वक़्त गुज़रा , कश्तियां पानी में बह रही थी।
कुछ यादें जुड़ी रही थी मुझसे।
आप ने यादों को मिटाना चाहा।
हम उस यादों के सहारे जीना चाहा।

बखुबी था साथ तुम्हारा।
जिंदा रहने का बहाना था।
हम खामोश होकर चलने लगे।
आप हमें मुसाफिर समझने लगे।