...

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मुझे एक दोस्त चाहिए
"मुझे एक दोस्त चाहिए"

अब बताऊँ किसे हाल अपना
कोई नहीं है इस जहाँ में अपना
जो थे, वो छोड़ कर चले गए
दामन बाँधकर ख़ुशियों का अपना।

मुझे एक दोस्त चाहिए।।

मैं ही सवाली बन गया आज़
मोहब्बत की भीख मांग रहा हूँ आज़
कोई न देगा मुझे अब वो सुकूँ, चैन
न कोई बैठेगा मेरे साथ दो पल आज़।

मुझे एक दोस्त चाहिए।।

मदद की है बहुतों की मैंने
कंधा दिया है सभी को मैंने
किसी ने मेरा हाल-ए-दर्द न समझा
फ़रेबी लिखा पाया पेशानी पे मैंने।

मुझे एक दोस्त चाहिए।।

जिन्हें हमने माना सबसे ज़्यादा
ख़ुद को वार दिया ख़ुद से ज़्यादा
उन्होंने हमें बीच रस्ते बदनाम कर दिया
मुझको झूठा, दूसरों को सच्चा माना हमसे ज़्यादा।

मुझे एक दोस्त चाहिए।।

अब भी जाता हूँ उनके पास मैं
फ़क़त ख़ुशियों से झोली भर दूँ मैं
कौन जानेगा मुझे, जब वो ख़ुद नहीं जाने
अब कैसे कहूँगा अपनी बात मैं।

मुझे एक दोस्त चाहिए।।

चलो बात उनकी भी कर लें
उनसे भी थोड़ी नाराज़गी जता लें
कौन-सा उन्हें फ़र्क़ पड़ने वाला है
बस हम ही अपनी भड़ास निकाल लें।

क्यों ये बताओ मुझे आज़ ज़रा
मैंने प्यार तो न किया था ज़रा
तुम्हारी तब्बसुम औऱ नैनों से बहक गया था
इसमें ख़ता मेरी नहीं थी ज़रा।

मैं तड़पता भी रहा तो इसमें तेरा क्या कुसूर
मैं फिरता रहा दर-बदर तो इसमें तेरा क्या कुसूर
रात के अंधेरों में, चोरों की तरह मेरे ख़्वाबों में आ भी जाओ
आफ़ताब की परछाइयों में तुम्हें देखूं तो इसमें तेरा क्या कुसूर?

भूल जाऊँगा मैं अब ये सबकुछ
कह दो मैं तुम्हारा हूँ सबकुछ
अब कोई गिला नहीं है मुझसे
भूल चुकी हूँ पुराना सबकुछ।

"अब तुम मेरे दोस्त हो
मेरी बातों के साथी हो
मेरी राहों के सफ़र हो
मेरी उलझनों के उपाय हो।
तुमको मैं क्या कहूँ अब
कैसे तुमको समझाऊंगी अब
मतलब नहीं इन बातों का अब
दोस्त हो मेरे बस दोस्त हो मेरे अब।"

अक़्सर ख़्वाब देखने लगता हूँ लिखते वक़्त
चंद लाइनें ऊपर की गवाही दे रही इस वक़्त
इसमें तलाश पूरी होती नज़र आ रही होगी
ताबीर नहीं, तख़ईल में होता है ये सब इस वक़्त।

मुझे एक दोस्त चाहिए।।


~शाश्वत














© Shashwat