...

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तन्हाई
हँसती आँखों में भी ग़म गहरे होते हैं,
यहाँ बातों में नहीं ख़ामोशियों के पीछे किस्से बहोत बड़े होते हैं।
यहाँ दर्द लोगों से बयां नहीं किए जाते,
तन्हाई के अंधेरों से हाल-ए-दिल सांझे होते हैं।

शिकायत दुनिया से नहीं,
नफ़रत अपने आप से होती है।
रोते दिल को चुप करवा पाए,
ऐसी शाम आख़िर कहाँ आती है।

दिल में तो आंसुओं का सैलाब तक आता है,
मगर इन आँखों में एक समन्दर भी बह नहीं पाता है।

अपनी ही दुनिया में अपने आप को खो चुकी हूँ,
फिर से मिल पाऊँ अपने आप को कहीं,
अब वो राह हर रोज़ ढूँढती हूँ।

किसे कहूँ कितना दर्द है दिल में,
आयी एक दिन ऐसी भी घड़ी,
जब मेरी उदासी भरे दो लफ्ज़ सुन वो मुस्कराती रात भी रो पड़ी।

मेरे दर्द से तो वाकिफ़ केवल मेरी कलम है,
बयां करने को उदासी ज़ुबान दो लफ्जों की कहानी भी नहीं बताती है,
फिर भी मेरे दिल से गुज़र मेरे हालों को यह पन्नों पर उतारती है।
© Musafir